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शिमला समझौते को ‘मृत दस्तावेज’ बताने वाले रक्षा मंत्री के बयान से पाकिस्तान सरकार ने बनाई दूरी

इस्लामाबाद, 6 जून 2025।
पाकिस्तान सरकार ने अपने ही रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के उस बयान से खुद को अलग कर लिया है जिसमें उन्होंने 1972 के ऐतिहासिक शिमला समझौते को “मृत दस्तावेज” बताया था। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया है कि भारत के साथ किसी भी द्विपक्षीय समझौते को रद्द करने का कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है। मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि शिमला समझौता सहित सभी मौजूदा संधियाँ अभी भी प्रभावी हैं और किसी भी निर्णय की प्रक्रिया आधिकारिक तौर पर ही पूरी की जाएगी।

गौरतलब है कि एक दिन पहले रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टेलीविज़न इंटरव्यू में यह दावा किया था कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद शिमला समझौता अप्रासंगिक हो गया है। उन्होंने कहा, “हम 1948 की स्थिति में वापस आ गए हैं, जब संयुक्त राष्ट्र ने नियंत्रण रेखा (LoC) को युद्धविराम रेखा घोषित किया था।” उन्होंने सिंधु जल संधि जैसी अन्य द्विपक्षीय समझौतों की भी समीक्षा की जरूरत बताई थी।

इस बयान के तुरंत बाद पाकिस्तान की विदेश नीति में भ्रम और मतभेद साफ दिखा, जिसके चलते विदेश मंत्रालय को सफाई जारी करनी पड़ी।

शिमला समझौता क्यों है अहम?
भारत-पाक युद्ध के बाद जुलाई 1972 में हुए शिमला समझौते के तहत दोनों देशों ने आपसी विवादों को शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाने पर सहमति जताई थी। यह समझौता दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद की आधारशिला माना जाता रहा है।

भारत की ओर से शिमला समझौते के सिद्धांतों को अब भी कायम रखा गया है, लेकिन पाकिस्तान के रक्षा मंत्री की हालिया टिप्पणी ने इस संधि की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

हालांकि, पाकिस्तान सरकार का ताज़ा रुख यह संकेत देता है कि वह अपने रक्षा मंत्री की राय से सहमत नहीं है और शिमला समझौते को अभी भी द्विपक्षीय संबंधों का मूल आधार मानती है।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि पाकिस्तान की राजनीतिक और कूटनीतिक सोच में आंतरिक असहमति और असंतुलन गहराता जा रहा है।

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